"कॉमेडी लिखना कोई आसान काम नहीं है, जनता को हंसी भी आना चाहिए."
ये डायलॉग नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने फिल्म घूमकेतु में बोला गया है. लेकिन अफसोस कि इसके डायरेक्टर पुष्पेंद्र नाथ मिश्रा, खुद ही इस बात पर अमल नहीं कर पाए.फिल्म की कहानी
घूमकेतु कहानी है यूपी के महोना में रहने वाले 31 साल के आदमी घूमकेतु की. घूमकेतु को लिखने का शौक है और वो बॉलीवुड में बड़ा राइटर बनना चाहता है. आज तक घूमकेतु ने कोई नौकरी नहीं की है और लिखने के एक्सपीरियंस के नाम पर उसके पास बस ट्रकों के पीछे लिखी दो लाइनें हैं, जिनका 'एक-एक शब्द' उसने खुद लिखा था.
घूमकेतु का परिवार भी अजब है. एक दद्दा है यानी घूमकेतु के पिता (रघुवीर यादव), जो हर छोटी बात पर गुस्सा करते हैं. संतो बुआ (इला अरुण), जो अपने भतीजे के लिए मां समान हैं और उसका पूरा साथ देती है. घूमकेतु के गुड्डन चाचा (स्वानंद किरकिरे) जो अपने प्यार को खोकर राजनीति में आ गए. सौतेली मां शकुंतला देवी और नई ब्याही दुल्हन जानकी देवी (रागिनी खन्ना), जिसे घूमकेतु उसके मोटापे की वजह से पसंद नहीं करता.
परफॉर्मेंस
नवाजुद्दीन, घूमकेतु के किरदार में फिट बैठते हैं. उनका अंदाज बहुत अच्छा है और वो अपने किरदार में जान डालते हैं. दद्दा के किरदार में रघुवीर यादव आपको हंसाते हैं. इला अरुण ने संतो बुआ के अपने रोल को बहुत बढ़िया तरीके से निभाया है. इला और रघुवीर इस खस्ताहाल फिल्म में जान डालते हैं. तो वहीं घूमकेतु के चाचा बने स्वानंद किरकिरे भी उनका साथ देते हैं.
डायरेक्शन
पुष्पेंद्र नाथ मिश्रा की ये फिल्म औंधेमुंह गिरती है. इसमें बहुत कुछ हो रहा है. एक मजेदार लीड किरदार है, एक नौटंकीबाज परिवार है, मुम्बई शहर है, आइटम सॉन्ग है और यहां तक कि ट्रेन पकड़ने वाला रोमांटिक सीन भी है, लेकिन इन सभी चीजों का कोई फायदा नहीं.
घूमकेतु एक कॉमेडी फिल्म है, लेकिन इसकी कुछ चीजों को अलावा आपको हंसी कहीं भी नहीं आती. आप बस बैठकर इस टॉर्चर के खत्म होने का इंतजार करते हो. ये फिल्म 2014 में तैयार हो गई थी लेकिन कुछ सालों तक रिलीज नहीं हो पाई. ये बात भी आपको साफ दिखाई पड़ती है, क्योंकि कुछ हिस्सों को चमकाने की नाकाम कोशिश की गई है.
OTT प्लेटफॉर्म पर फिल्म के आने का फायदा यही है कि आप उसे जब चाहो बंद कर सकते हो. हालांकि इस फिल्म को शुरू ही न करो तो अच्छा होगा.
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